Tuesday, March 19, 2013

... औरत कोई सामान नहीं ..!

अब करनी है एक नयी शुरुआत 
एक औरत जिसे हमेशा अबला कह कर पुकारा जाता है। जिसे लोग घर में पड़े एक सामान की तरह समझते है। पर क्या सचमुच औरत एक सामान की तरह है। जिस औरत ने कभी दुर्गा, रानी लक्ष्मी बाई का रूप धारण कर अन्याय के खिलाफ जंग लड़ी। जो औरत सृष्टी  की सृजन कर्ता है. यदि एक औरत नहीं होती तो शायद यह सृष्टी  भी नहीं होती। जो औरत माँ बनकर एक पुरुष को इस लायक बनाती  है की वह बड़ा होकर शान से सर उठाकर समाज में चल सके, पर उसी औरत को समाज वह स्थान नहीं देता जो उसे मिलना चहिये. मैं तन्हाई में अक्सर सोचती रहती हूँ की सामाजिक विकास में हर कदम पर पुरुषो का साथ देने वाली एक औरत को यही पुरुष समाज वह स्थान क्यों नहीं देता जो उसे मिलना चाहिए। आखिर क्यों ऐसा होता है की लोग एक औरत की भावनाओ को नहीं समझते है. आज भी लोग एक औरत को एक सामान की तरह समझते है. यह जो  भी मैं लिख रही हूँ कोई अतिशयोक्ति नहीं है बल्कि  आज भी जो मैं  सह रही हूँ उसी व्यथा को व्यक्त कर रही हूँ। अपने हक़ को पाने के लिए मैंने फेसबुक को ही सहारा बनाया और उसी के सहारे  लोंगो को अपने पक्ष में इकठ्ठा किया, . पर इस दौरान मैंने कितने ज़हर के घूँट पिए है उसे मैंने ही महसूस किया है. कई बार मेरे हौसले पस्त हुए है मैं सभी को बुरा नहीं कहती पर बहुत से लोग ऐसे मिले जिन्होंने मुझे अकेला समझ कर बेतुके प्रस्ताव रखे मेरा मन बहुत विचलित हो जाता था। कभी कभी मन में निराशा होती थी की मुझे सच में जीने का हक़ नहीं है. मुझे यह लगता था की कही खुद से लड़ते लड़ते यह हालत न हो जाय की मुझे मौत को ही गले लगाना पड़े पर मैं अपने गुरु जी का जीवन भर आभारी रहूंगी जो हमेशा मुझे जिन्दगी और हालात  से लड़ने की प्रेरणा देते रहे. वे हमेशा मुझसे कहते है की यदि तुम्हे सफल होना होना है तो सिर्फ और सिर्फ अपने लक्ष्य पर ध्यान दो और सारी  बातो को दरकिनार कर दो. सच के लिए लड़ने की ताकत होनी चाहिए हर युग में सच्चाई को अग्नि परीक्षा से गुजरना पड़ा है जब त्रेता युग में माँ सीता को सिर्फ एक रावन का सामना करने के लिए इतने कस्ट  उठाने पड़े तो तुम्हे हर कदम पर रावन मिलेंगे यह कलियुग है यहाँ सीता की भावनाओ की कोई क़द्र नहीं है। गुरु जी की बाते हमें हमेशा याद रही जो हमारा सहारा बनी।
फेसबुक के जरिये अपनी आवाज हमने उठानी शुरू की तो मेरा मनोबल दृढ हो चूका था। मेरे आंसू सूख  चुके थे। मुझे मान-अपमान की परवाह नहीं थी। मेरे दिल में बस एक ही बात थी की कल जब मेरी आँचल  बड़ी हो और मुझसे सवाल करे की मुझे बाप का नाम दिलाने के लिए क्या किया तो मुझे मुह न छुपाना पडे। भदोही में जिस तरह लोंगो ने मेरा साथ दिया उनकी मैं आजीवन आभारी रहूंगी। सच कहू तो मुझे सामाजिक  जीत मिल चुकी थी।
उसके  बाद पत्रिकाओ में जिस मेरी कहानिया छपी उन्होंने मुझे बहुत दुखी किया। मैंने महसूस किया की सिर्फ अपनी पत्रिकाओ को बेचने के लिए किस तरह कहानियो में झूठ की चासनी लपेटी जाती है। ऐसी पत्रिकाओ में किसी की भावनाओ की कोई कीमत नहीं होती है।
तीन दिन मेरी जो कहानी सोनी टीवी पर दिखाई गयी उस कहानी ने कई बार मेरे ज़ख्मो को कुरेदा, मेरे जख्म फिर से हरे हो गए।  मेरी आँखों से आंसू  निकले। मैंने अपने जीवन में जो सहा है। उसका तो कुछ अंश ही  दिखाया गया है। यहाँ भी मेरे साथ न्याय नहीं किया गया।
मैं कहना चाहूंगी की उतना सहारा मुझे नहीं मिला जितना दिखाया गया है, काश उतना सहारा मुझे मिलता ...! काश उसी तरह मेरी भी कोई सहेली होती ...! काश पुलिस वही बर्ताव करती ...! जो जिन्दगी में घटित होता है वह छायांकन में नहीं दिखाया जा सकता ...! मेरे अंतर्मन की जो व्यथा है वह मैं ही व्यक्त कर सकती हूँ ...! वह छोटी सी बच्ची जो दंगे के दंश को सहा है, जो अपने माँ बाप भाइयों के प्यार को तरस गयी ...! जिसने व्यंग बाणों के तीर सहे हो ..! जिसने अपनी पीठ पर लोंगो की हंसी उड़ाती निगाहों की चुभन महसूस की हो। जिसने कई बार फांके सहे हो। जो कई बार भूखे पेट सोने को विवस हुयी हो। क्या उसके दर्द को सीरियल और कहानियो में व्यक्त किया जा सकता है। शायद नहीं ..!
प्यार विश्वास का ही नाम है। मैंने भी विपिन पर विश्वास किया था। पवित्र अग्नि के सामने सात फेरे लिए। पर विपिन ने जब धोखा दिया तो सारे रिश्तेदारों ने भी मुह फेर लिए। क्या विपिन ने मुझे एक सामान नहीं समझा था की इसका कोई नहीं है इसे इस्तेमाल करो और कचरे की तरह फेंक दो। क्या भावनाए उसी लड़की के दिल में होती है जिसके बाप के पास पैसा होता है। जो गरीब है उनके भावनाओ की कोई कीमत नहीं है।

मैंने फैसला किया है की अब जीवन में मुझे कुछ करके दिखाना है। सिर्फ अपने लिए नहीं बल्कि उन पीड़ित महिलाओ और बच्चो के लिए जो अपने जीवन में कही न कही अन्याय की शिकार हुयी है। इस कार्य में मुझे उन लोंगो का सहयोग चाहिए जिन्होंने मेरा मनोबल बढाया है और मुझे एक नयी जिन्दगी दी है।
इससे पहले मैं अपने जीवन पर खुद ही एक किताब लिखना शुरू कर दिया है। बचपन से आज  तक मैंने जो जिया और महसूस किया। इस लड़ाई में किन लोंगो ने मुझे हौसला दिया और किन लोंगो ने मेरे मनोबल को तोड़ने की कोशिश की। यथार्थ जीवन के अलावा फेसबुक पर मुझे किस तरह के लोग मुझे मिले। किन लोंगो ने मेरी भावनाओ का सम्मान किया और किन लोंगो ने मुझे सिर्फ एक सामान समझा । मैंने अब सोच लिया है की मेरे जीवन का एक एक सच लोंगो के सामने आना चाहिए।

अब मेरे जीवन की एक नयी शुरुआत होगी और मुझे अपने शुभचिंतको का साथ चाहिए। सिर्फ उन लोंगो का जो नारी को सिर्फ उपभोग की वस्तु नहीं समझते। जिन लोंगो की निगाह में औरत सिर्फ एक औरत ही नहीं बल्कि एक माँ, एक बेटी और एक बहन होती है। जो महिलाओ की भावनाओ को समझते है और जिन्हें यह पता है की सच्ची दोस्ती का अर्थ क्या होता है।

 यदि मेरे 1200 से अधिक फेसबुक दोस्तों में 100 लोग भी ऐसे मिले जो मेरी मंजिल को हासिल करने में मेरा सहयोग दिल से करेंगे, मेरा मनोबल को बढ़ाएंगे तो शायद मैं जिन्दगी की कई जंग हंसकर जीत जाउंगी।

मेरी इस आई डी में ऐसे लोग काफी संख्या में हो गए है जिनकी बातों से मेरी भावनाए आहत होती हैं। मैं चाहूंगी की मेरी नयी आई डी में सिर्फ वही लोग शामिल हो जो बेवजह की बातो से न तो मुझे परेशां करे और न ही खुद परेशां हो। सिर्फ उन्ही लोंगो से मैं जुड़ना चाहती हूँ जो महिलाओ के प्रति सही सोच रखते हो और सामाजिक हो, जिन्हें रिश्ते की कदर हो और जो मेरी ही नहीं बल्कि और भी पीड़ित महिलाओ के हक़ के प्रति गंभीर हो।
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2 comments:

Kajal Kumar's Cartoons काजल कुमार के कार्टून said...

समाज को समन्‍वय की आवश्‍यकता है

gyan shankar pal said...

तुम हो न सके मेरे
दुनिया की ख्वाहिशों से मेरा काम क्या
दिल से दिल को जो मिलाये
ऐसी तलब का है भला दाम क्या

हम तो डूबे हैं वहीँ पर
उथले किनारों पर भला वफ़ा का काम क्या
चलें तो चलें कैसे
वो मेंहदी , वो महावर का भला सा नाम क्या

वक़्त की कोई चाल सूरज के साथ मिली
भरी दुपहरी में और घाम क्या
चाहने किस को चले हैं
इश्क की नगरी में किसी को आराम क्या

अश्कों से लिखी दास्तान , परवाह किसे है
इस अहले-सफ़र का हो अन्जाम क्या