Saturday, December 15, 2012

दिन भर की मेहनत और 30 रूपये आमदनी , दुःख, परेशानियाँ, मुसीबते हमारे जीवन के ही अलग अलग रंग

घर पर बैठकर पेट भरने का जुगाड़ 
जीवन में बहुत सी ऐसी बाते होती है जो इन्सान बताना नहीं चाहता। किन्तु हालात ऐसे बन जाते हैं की जीवन से जुडी वह बाते भी सामने लानी पड़ती हैं। जो व्यक्तिगत जीवन से जुडी होती है। मैं घुटन में जी रही थी। पर फेसबुक  के साथियों ने ही मेरा मनोबल बढाया है। और मुझे मान सम्मान भी मिला। जीवन में सम्मान और स्वाभिमान  मेरे लिए मायने रखता है। अपनी रोजी रोटी तो इन्सान मेहनत करके कमा  ही सकता है।
जब फेसबुक पर  कुछ अपडेट करने के लिए आन लाइन होती हूँ तो अधिकतर लोग यही सवाल करते हैं की मैं करती क्या हूँ। मैं नहीं चाहती थी की जिन्दगी की कुछ कडवाहट आप लोंगो से शेयर करू। पर शायद ऐसी परिस्थितियां बन चुकी हैं की आपके हर सवालो का जवाब देना जरूरी है।
पिताजी ने इतना अवश्य किया की दुनिया छोड़कर जाने से पहले हमारे सर पर एक छत छोड़ दिए। जब विपिन से शादी हुयी तो उन्होंने कहा की मेरे घर की औरते नौकरी नहीं करती। पति की बात मानकर नौकरी छोड़ दी थी। बेटी पैदा होने के बाद उन्होंने किनारा कस लिया। बेटी छोटी थी किसी के पास छोड़कर जा नहीं सकती थी। अभी भी वह अपनी मम्मी से भी चिपके रहती है। चाहकर भी कही नौकरी नहीं कर सकती हूँ। लेकिन दो लोंगो का पेट पालने के लिए कुछ करना ही था। मेरी पड़ोस की एक भाभी ने सलाह दिया की जींस पेंट का लेबल घर पर लगाने को मिलता है। यह काम  तुम घर बैठे कर सकती हो। वही भाभी मुझे वह लेबल लाकर देती हैं। बिटिया को भी संभालना है और काम भी करना है। दिन भर जो समय बचता है। वह मैं अपने काम में लगाती हूँ। अच्छा यह है की यह काम  मैं अपनी सुविधानुसार घर बैठे कर लेती हूँ।
एक हजार लेबल लगाने के 40 रूपये मिलते है। पर आँचल की वजह से मैं बहुत मेहनत करती भी हूँ तो मुश्किल से 30 ले 50 रूपये का काम हो जाता है। कमरे का किराया देना नहीं पड़ता और किसी तरह पेट तो भर  ही  जाता है।
दुनिया में बहुत से लोग ऐसे हैं जिन्हें यह भी नसीब नहीं है। मैं हमेशा अपने से नीचे के लोंगो को देखकर संतोष करती हूँ। जीवन में एक ही भूल की जो प्रेम विवाह किया और उसका परिणाम भुगत रही हूँ। खैर तकदीर में जो लिखा होता है वही होता है। स्वाभिमान से जीना है तो कष्ट भी हमें ही उठाने होंगे। मैंने सिलाई कढाई बुनाई ब्यूटीशियन के काम भी सीखे हैं, पर जब तक आँचल बड़ी नहीं हो जाती घर पर ही कुछ करना है। नौकरी की बात सोच भी नहीं सकती।
मैं कोई समाजसेवी नहीं हूँ। मैंने बचपन से ही मुसीबतों को झेला है। जीवन में तमाम ऐसे पड़ाव भी आये जहा जीवन निराश भी हुआ। मन में विचार भी आया की बेटी के साथ खुद को समाप्त कर लू। पर अंचल की मुस्कराहट देखकर कदम पीछे खींच लिए। मन में यही ख्याल आता की उसका कसूर क्या है। मैं अपनी उन बहनों से कहना चाहती हूँ जो निराशा में जीवन को कुंठित कर देती है। और एक दिन ऐसा आता है जब वे जीवन को समाप्त करना चाहती है। जिवन अनमोल है। उसे जीना चाहिए। दुःख, परेशानियाँ, मुसीबते हमारे जीवन के ही अलग अलग रंग हैं। सभी का मुकाबला स्वाभिमान के साथ डटकर और हंसकर  करना चाहिए। डिंपल।। 

2 comments:

रजनीश के झा (Rajneesh K Jha) said...

बेहतर लेखन !!

Anonymous said...

I salute you and your neighbours. I've seen TV show and It's wonderful to see you at this level. You are doing really nice social work. All men should know this and have some moral duty to support their dependants.

Take care of your little princess.