Friday, December 14, 2012

भदोही को कभी नहीं भूल पाऊँगी

मैंने अपने जीवन में सिर्फ दुखो का ही एहसास किया था। जब विपिन मिश्र से मेरी शादी हुयी थी। उसके बाद लगभग एक वर्ष तक उनके साथ रहकर जो सुख का अनुभव किया तब लगा की अब मेरी जिन्दगी से दुखो के बदल छंट गए हैं। पर धोखा मिलने के बाद एक बार फिर दुखो के समंदर में डूब गयी। जीवन से निराश थी। मुंबई में गुहार लगायी पर किसी ने भी नहीं सुना। जो मिला उसकी निगाहे भूखी थी। पोलिस को देने के लिए कुछ नहीं, लिहाजा सुनवाई नहीं । जीवन अभावग्रस्त था। सोचा था एक तो अभावग्रस्त जीवन और  दुसरे अपमानजनक परिस्तिथिया पैदा हो चुकी थी। ससुराल वाले  सुनते नहीं  थे। जो पति जीने मरने की कसम खता था उसने मुझे मौत के मुहाने पर खड़ा कर दिया। सोचा जीवन को ही समाप्त कर दू।
पर जिस भदोही के एक व्यक्ति ने मेरा जीवन तबाह किया उसी भदोही ने नयी जिन्दगी दे दी। जिन्दगी नहीं सम्मानजनक मौत की अभिलाषा लेकर भदोही पहुंची और मेरा जीवन बदल गया। आज  भी सोचती हूँ तो सहज ही विश्वास नहीं होता। इतना मान सम्मान और अपनापन। मैंने कभी सोचा भी  नहीं था, मुंबई आने के बाद सब सपना सा लगता है।
11 दिन तक वह के लोंगो ने एक बहू और बेटी की तरह अपनापन दिया। भदोही रेलवे स्टेशन पर सैकड़ो लोंगो ने बिदा  किया। वहा  से चली तो बहुत खुश थी। जिस ट्रेन में बैठी थी वहा भी लोंगो ने पहचान लिया। मेरा हौसला बढाया। पूरे रास्ते लोंगो ने बेटी की तरह मान दिया। सोचा चलो मुंबई जाकर फिर वही जिन्दगी। यहाँ जब कल्याण स्टेशन पहुंची तो नगर सेवक की गाड़ी आई थी लेने के लिए। उल्हासनगर पहुंचाते ही मेरी आंखे खुली रह गयी। मैं आश्चर्य में डूब गयी। सैकड़ो लोग  मेरे स्वागत में खड़े थे। माला पहनकर मेरा स्वागत किया गया, मेरी आरती उतारी गयी। मुंबई की जो मीडिया मुझे पूछती भी नहीं थी। उसने भी सर आँखों पर बिठाया। दो दिन से मीडिया वालो का आना जाना लगा है। यहाँ भी सपोर्ट मिल रहा है। सामाजिक संगठन और महिलाये आकर मेरा हौसला बढ़ा  रही है।
अब जीना है, अपनी बेटी को पढाना है। मैं कोई सामाजिक कार्यकर्त्ता तो नहीं हूँ। क्योंकि जीवन की जरूरतों को पूरा करने के लिए मुझे मेहनत  भी करनी है। पर सीख गयी हूँ। और अपनी जैसी बहनों से कहना चाहूंगी की कभी हालात से घबराओ मत। क्योंकि जो हौसला दिखाते है लोग उसी का साथ देते हैं। हालात से घबराकर मौत के बारे में सोचना कायरता है। जीवन संघर्ष का नाम है और मैं संघर्ष करुँगी। यह मैंने भदोही में जाकर   सीख लिया। मेरी जिन्दगी के  सच्चे गुरु मेरी अपनी भदोही के लोग है। मुझे अब जीना है। अपने लिए। अपनी बेटी के लिए और अपने जैसी बहनों के लिए। धन्यवाद भदोही और धन्यवाद भदोही के लोग। जिन्होंने मुझे मेरा जीवन लौटा दिया। ......... डिंपल ..........

2 comments:

राजन said...

जो पीडित है वो एक बार हिम्मत करे तो सही,बाकी सब अपने आप ठीक हो जाता है।
शुभकामनाएँ!

Unknown said...

Aap ka bhai mai aap ko humesha kush dekhne k liye bhagwaan se duva karta rahunga,

aur aap kabhi housla matt hariye,
humesha saty ki jeet hoti hai,